Share: Title:०३९४ राग की आदि - मध्य - अन्त में पुद्गल होने से पुद्गल ही राग का प्राप्य - विकार्य - निर्वर्त्य है! Duration: 19:34 Plays: 507 views Published: 5 months ago Download MP3 Download MP4 Simillar Videos ▶️ 28:52 ०४५६ अर्पणता किसके प्रति होनी चाहिए ? लक्ष्य कैसा और किसका होना चाहिए ? विनय किसका करना ? 507 views • 3 months ago ▶️ 15:12 ०१५० १/२ सम्यक् दर्शन की विधि — ज्ञेय को जानने के समय भी ज्ञायक का ही अनुभव हो रहा है ऐसा श्रद्धान ! 507 views • 1 year ago ▶️ 19:47 ०४९८ ज्ञान ने आत्मा की सेवा करी कब कहा जाएगा ? 507 views • 2 months ago ▶️ 1:01:06 Gv-2 - Prav. No. 434 On Samaysaar(19th Time), Shlok No. 228 To 230. By Pu. Gurudevshree Kanjiswami 507 views • 3 years ago